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मां पद्मिनी और संघ की चुप्पी !संघ और पद्मावत: जटिल संबंधों की बानगी!

मां पद्मिनी और संघ की चुप्पी !संघ और पद्मावत: जटिल संबंधों की बानगी!

मां पद्मिनी और संघ की चुप्पी !
संघ और पद्मावत: जटिल संबंधों की बानगी!
बहुत से मित्र कह रहे हैं, पद्मावत फ़िल्म में संघ को लक्ष्य क्यों किया जा रहा है?
संघ का इस विवाद से क्या लेना देना।

मां पद्मिनी और संघ की चुप्पी


मेरा मानना है वैचारिक संघर्ष के बढ़ते आयामो और नई पीढ़ी के विचारकों ने जो सनातन को आश्रय स्वीकार कर धर्म रक्षण के संघर्ष को धार भी दे रहे हैं और विस्तार भी, उनके उठाये प्रश्न अभी तक के चलते आ रहे आंदोलन को तीखा भी कर रहे हैं और लक्षयबद्ध भी।
इन परिस्थितियों में पद्मावत विवाद पर संघ के ऊपर लगा आक्षेप संघ का स्वयं का खड़ा किया हुआ संकट है। उसे तो यह झेलना ही पड़ेगा। या तो उसे बताना पड़ेगा कि क्यों वो माँ पद्मिनी के ऊपर बनने वाली फिल्म को जातीयता के झमेले में रखे जाने तक मौन धारण किये रहता है? या फिर वो हिन्दू समाज के अस्मिता, गौरव के प्रश्नों पर अब कन्नी काटने लगा है।
जबकि सामान्य से सामान्य फेसबुकिया राष्ट्रवादी भी यह तथ्य समझ रहा है कि हिंदुत्व की त्याग परम्परा में, वो भी इस्लाम के विरुद्ध लड़े गए युद्धों की जीवंत परम्परा में माँ पद्मिनी देवी रूप में स्थापित हैं, गाँव के गीतों तक में रची बसी हैं तो उस पर संघ का मौन घातक होगा। वो भी  ऐसी स्थिति में जब केंद्र के अतिरिक्त 19 राज्यों में भाजपा की सरकारें है।
संघ-भाजपा की समन्वय बैठकों में जब भाजपा का शीर्ष नेतृत्व जाता है, और संघ को मातृसंगठन का मान देता है, उसकी विचारधारा, दलीय अनुशासन का मान रखते हुए। ऐसे में सरकारवालो का व्यवहार धोखा देने वाला लगता दिखाई देता है तो आप कैसे संघ को बचा पाएंगे?
बच्चों के कुकर्मो पर माता पिता गाली खाते हैं, यह स्वाभाविक है, विशेषरूप से जब मातापिता अच्छे किये का श्रेय लेते हों! यह मीठा मीठा गम और खारा खारा थु, ऐसा कैसे चलेगा?
वो भी ऐसे समाज में, जहाँ संघर्ष निर्णायक होने की दिशा में जा रहा है! जहां धर्मविरोधी सरकारें तो कम्युनल वायलेंस बिल लाती हैं, मंदिरों को अधिग्रहण कर उन्हें लूट रही हैं ऐसे में राष्ट्रवाद से उपजे वोटों को उनके "देश नही झुकने दूँगा" जैसे आश्वासनों से लेकर बनने वाली सरकार हिंदुत्व के गौरव अस्मिता के साथ छल करेगी तो उस सरकार के मातृसंगठन को सरकार की विफलता, कुकर्मों से उपजी गालियों से कैसे बचा पाएंगे हम और आप?
क्या आ० अटलजी के समय 2004 के चुनावों में संघ पर प्रश्न नही उठे थे? जिन लक्ष्यों को लेकर सरकार में लाने के लिए संघ उसके अनुषांगिक संगठन काम करते हैं जिस हिंदुत्व के गौरव इतिहास के अधिष्ठान पर खड़े होकर परम वैभव की बात करते हैं, वहाँ पर इस प्रकार की दुःखद स्थिति से संघ अपने आपको कैसे बचा पायेगा।
यहाँ तो पद्मावत फ़िल्म के विवाद पर संघ को या तो बन्द कमरे में सरकार से निर्णय करवा लेना चाहिए था, या सड़क पर आंदोलन के लिए विहिप बजरंग दल को उतार देना चाहिए था।
श्रेष्ठ रणनीति तो यह होती कि इस अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नाम पर होने वाले षड़यंत्र को पूरी तरह से खोल के रख दिया जाता, सदैव के लिये निर्णायक निर्णय लेती हुए।
कोई होता हमारे जैसा तो सर्बोच्च न्यायालय से लेकर मीडिया और धर्मविरोधी सभी को एक साथ तुलवा देता। खोल कर रख देते अभी तक लगाए गए सभी प्रतिबंधों को जो ईसाइयों, मुसलमानो को तुष्टिकरण करते हुए लिए गए थे। कर देते न्यायालय के समक्ष यह प्रश्न खड़ा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता ईसा मूसा मुहम्मद के समय कहाँ चली जाती है? या तो सब पर प्रतिबंध लगेगा या किसी पर भी नही! यह भेदभाव जो हिन्दुओ के साथ होता आया है वो नही चालेगा। क्या हिंदुओ ने इसी भेदभाव की कांग्रेसी नीति के विरुद्ध वोट नही दिया था!
अहो! दुर्भाग्य  क्या करे जिसे रोहिथ वे'मुल्ला भारत माँ का लाल लगे उनसे यह संभव नही हो पायेगा!
यह कला के विषय नही है अपितु विशुद्ध  राजनैतिक ही होते हैं। संजय लीला भंसाली जैसे कथित कलाकार, कला का प्रदर्शन नही सीधे सीधे राजनीति कर रहे हैं, यह स्पष्ट है किंतु ढुलमुल नीतियाँ संगठन की भी हैं और सरकार की भी, ऐसी स्थिति में अपने सम्मान की रक्षा के लिए आवश्यक प्रश्न समाज पूछेगा ही।
विशेषरूप से ऐसी स्थिति में जिसमे सरकार, सत्ता के विभदेकारी निर्णय समाज के सामने स्पष्ट दिख रहे हो।
राजनीति का प्रत्युत्तर राजनीति है। कालवी जी यदि राजनीति कर रहे हैं तो उसका उत्तर राष्ट्रहित की राजनीति ही है, यदि संघ चुप रहेगा तो समाज चुप नही बैठेगा वह कालवी जी का नेतृत्व स्वीकार कर लेगा। फिर यदि आप कहोगे कि वो जातिवाद कर रहे है तो समाज पलट कर पूछेगा ही, कि आप कहाँ थे, जब कालवी जी प्रश्न उठा रहे थे। आपके पास सत्ता है शक्ति है क्यों नही निर्णय लिया?  पूछना भी चाहिए!  क्यों जाने दिया इस राजनीति को हिन्दू समाज को तोड़ने वालों के हाथों में? (यदि हम मान भी ले कि कालवीजी हिन्दू समाज को तोड़ रहे हैं) 284 क् बहुमत कालवी जी को नही आपको दिया था, आप विफल रहे तो नया नेतृत्व आएगा ही।
समाज से बड़ा कोई दर्पण नही है, दुर्भाग्य से हम इस दर्पण को कम्युनल वायलेंस बिल के समय उपजे संकट पर हमारे लोगो की सरकार न होने पर तो विरोध करते हैं, पर उसी प्रकार समाज तोड़ने, हमारी श्रेष्ठ परम्परा, देवतुल्य नायक नायिकाओं के सम्मान को खंडन करने में लगे राष्ट्रविरोधियों के घातक कुचक्रो पर मात्र इसीलिए चुप्पी साध लेते हैं कि हमारे लोगो के पास सत्ता है।
पर यह भी कटु सत्य है लोक के आलोक में कुछ भी छिपा नहीं रह सकता है, यह स्पष्ट रहे।
इस षड्यंत्र से सरकार चाहती तो पूरी व्यवस्था के धर्म विरोधी चरित्र को फाड़ कर रख सकती थी, वो भी न्यायायिक प्रक्रिया में ही।
पर करे क्या सरकार के वकील तो 2G  में भारत की जनता के लूटे गए मोटे माल की बंदरबाँट जैसे मामलों में मस्त है और फिर सरकार की ही फजीती करवाते हैं। तो निष्कर्ष यही होंगे मित्र!
ऐसा नही है कि हमारे पास योग्यता का अभाव है पर दलालो की नियुक्तियां होंगी तो 2G के कांडों से अपराधी आपको भी गालियां देते निकलेंगे! और आप कुछ नही कर पाएंगे क्योंकि आपने सत्ता का उपयोग हिन्दू हित के लिए नही किया।
जब सैटेनिक वर्सेज़ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को सड़क पर नीलाम करते हुए प्रतिबंधित की जा सकती है तो हमारे गौरव के साथ खिलवाड़ करते दुष्कृत्यों को क्यों नही रोका जा सकता है?  जबकि यह सरलता से संभव है।
यह तो हमे तय करना है कि स्वयमसेवक होने के नाते हमारा धर्म क्या है? हिन्दू होने के नाते हमारा क्या धर्म है?  हमें किस ओर खड़ा होना है अन्यथा क्या सामर्थ्य है किसी जातिवादी संगठन में कि हमारे गौरव के साथ घृणित राजनीति कर सके?
ओर हम कातर गुहार लगाए कि हमें कुछ न कहो!
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राम मन्दिर आंदोलन में 14 वर्ष की आयु में जेल गए, राष्ट्रीय मजदूर मोर्चा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रहे और संघ से गहन रूप से जुड़े मित्र Devendra Sharma जी का आलेख।

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