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महिला सशक्तिकरण और क्षत्राणीयां

महिला सशक्तिकरण और क्षत्राणीयां

महिला सशक्तिकरण और क्षत्राणीयां

    क्या है यह महिला सशक्तिकरण ?

क्षत्रिय  समाज में महिला सशक्तिकरण


  उस पर विचार करने और एक स्वस्थ व बृहद चर्चा करने की जरूरत है, लेकिन विचार व चर्चा करने से पहले हमें चिंतन करना होगा कि महिला सशक्तिकरण का सही अर्थ क्या है? सशक्तिकरण के साथ यह भी जानकारी होना चाहिए कि हम कहीं सशक्तिकरण के नाम पर अराजकता तो नही फैला रहे हैं। कहीं हम समाज में प्रचलित रीति-रिवाज और प्रथाओं का उलंघन तो नही कर रहे। हम नारी  स्वतंत्रता का गलत फायदा तो नही उठा रहे। कहीं हमे गलती फहमी तो नही हैं कि सशक्त होने का मतलब ही मन-मर्जी से जीना और सामाजिक रीतियों को तोड़कर अपनी अच्छी-बुरी हर ख्वाहिशों को पूरा करने की कोशिश कर रहे हैं। अब समय आ गया है हम इसकी वास्तविक परिभाषा को समझें और सशक्त बने ।
महिला सशक्तिकरण का अर्थ है,महिलाओं में आत्म सम्मान, आत्म निर्भरता व आत्मविश्वास जागृत करना है। महिला सशक्तिकरण के लिए वर्तमान में सबसे बड़ी आवश्यकता उनको अपने अधिकारों एवं कर्तव्यो के प्रति सजग होने की है।
  क्षत्रिय  समाज में महिला सशक्तिकरण-  वो समाज जिसमें स्वयं नारी शक्ति का स्वरूप हो,  जो समाज उसी शक्ति स्वरूपा का उपासक हो ,  जो युगों युगों से नारी सशक्तिकरण और सम्मान का उदाहरण हो वहां महिला सशक्तिकरण की बात ना सिर्फ बेमानी होगी बल्कि उन समस्त शक्तियों के तप ,तेज, और उनकी प्रधानता का अपमान कहें तो अतिश्योक्ति नहीं होगी ।
                                   एक सशक्त  क्षत्राणी  के बिना क्षत्रियत्व जीवन कभी  भी  सृजित नहीं हो सकता था।  इस  समाज में यदि नारी सशक्त नहीं होती तो  यहाँ  पुरुष न तो अच्छी तरह से जिम्मेदारी निभा पाते हैं और ना ही लंबे समय तक जीते हैं। इसी नारी सशक्तिकरण की नींव पर हजारों हजार वर्षों से यह समाज उसी मजबुती के साथ खड़ा है  अगर मजबुती  की बात की जाए तो क्षत्राणीयां पुरुषों से ज्यादा मजबूत होती हैं क्योंकि वो क्षत्रियों को जन्म देती हैं।
समाज के सन्दर्भ में नारी की स्थिति युगानुयुग परिवर्तनशील बनी रही है। नारी की महत्ता और गौरव एवं उसका वर्चस्व और गरिमा कभी उच्च से उच्चतर हो रही है, तो कभी उसमें ह्रास परिलक्षित होता है। एक सा स्वरूप उसका कभी नही रहा। आज नारी की जो सामाजिक और स्थिति है। ‘कल’ वैसी न थी, यह अन्य बात है, कि नारी अपनी विद्यमान अवस्था को अतीत की अपेक्षा उन्नत मानती है
मगर ....

आज के इस युग में भी हमें पहले से ही सशक्त क्षत्राणीयों के सशक्तिकरण की आवश्यकता ना होकर उनमें संस्कारों को सशक्त करने की आवश्यकता है, उनमें क्षत्रियत्व के भाव को सशक्त करने की आवश्यकता है, उनमें संस्कृति को सजोये रखने के भाव की आवश्यकता है । हमें माता सीता, माता पद्मावती, अपूर्वी चंदेला,  दीपीका राठौड़, शहीद पायलट कीरण शैखावत  जैसी   क्षत्राणीयों की परम्परा को जारी रखना होगा  ना की आधुनिकता और नारी सशक्तिकरण के नाम पर, स्वयं के  नाम के लिए प्रायोजित फुहड़ परंपरा एवं चलन को । और हाँ बताता चलु की  घोड़ियों पर बैठने और अंग प्रदर्शन करने  से सशक्तिकरण नहीं हुआ करते । क्षत्राणीयो की शिक्षा के विस्तार और क्षत्रियत्व को केन्द्रीय स्थान देना होगा ताकी इनके चरित्र निर्माण और बम्हचर्य रक्षा में दूर तक प्रभाव  पडे़ ।
राजवीर सिहं राठौड़ निम्बड़ी

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